7 kyon aatee hain prem vivaah mein baadhaen 7 क्यों आती हैं प्रेम विवाह में बाधाएं

 

 

7 क्यों आती हैं प्रेम विवाह में बाधाएं

7 क्यों आती हैं प्रेम विवाह में बाधाएं

ज्योतिष शास्त्र प्राचीन विद्या है। जिसके सहारे किसी भी व्यक्ति के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का विश्लेषण किया जा सकता है। ज्योतिष विज्ञान है जो न कभी गलत था और न होगा। अब तो विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में इसके पठन-पाठन की व्यवस्था भी होने जा रही है।

भारतीय ज्योतिष में जन्म कुंडली के बारह भावों का व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंध है। जीवन साथी का चयन, प्रेम, विवाह आदि जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर ज्योतिष ने स्पष्ट विचार व्यक्त किए हैं।

लग्न व्यक्तित्व का परिचालक है। इसके (लग्न) बलवान होने से ही व्यक्ति सुंदर और आकर्षक होता है। 12 भावों में से सप्तम भाव जीवन साथी का भाव है। जीवन साथी के विषय में जानकारी सप्तम भाव से प्राप्त होती है। शिक्षा बौद्धिक क्षमता एवं निर्णय क्षमता का परिचालक पंचम भाव है। एकादश भाव से मित्रों तथा सहयोगियों के विषय में जानकारी मिलती है। नवम भाव भाग्य का तथा पंचम भाव पराक्रम का है। इन सभी भावों का प्रेम विवाह, गंधर्व विवाह आदि में महत्वपूर्ण योगदान होता है। मित्रता या जीवन साथी के चुनाव तथा प्रेम विवाह में चंद्रमा,मंगल तथा शुक्र की अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

चंद्रमा शीघ्र गति से चलने वाला रहस्यमय और मन का कारक है। मन पर अधिकार होने के कारण चित्त की चंचलता का चंद्रमा ही निर्धारण करता है। मंगल ऊर्जा और साहस प्रधान ग्रह है। रक्त पर इसी का अधिकार है। प्रेम विवाह या गंधर्व विवाह के लिए साहस की आवश्यकता होती है। चंद्रमा युवा ग्रह है तथा तेज गति से चलता है इसलिए युवाओं, प्रेमी और नवविवाहितों पर इसका सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। प्रेम-विवाह में इन तीनों ग्रहों की अहम भूमिका होती है। चंद्रमा मन, मंगल साहस और शुक्र आकर्षण से युवक-युवतियों की मित्रता में छिपे रहस्य को जाना जा सकता है। ज्योतिष शास्त्र के विभिन्न फलित ग्रंथों तथा व्यावहारिक अनुभव से प्रेम-विवाह के कुछ योग इस प्रकार कहे जा सकते है।

1. यदि सप्तम भाव का स्वामी तथा तृतीय भाव के स्वामी मिलते हैं तो प्रेम-विवाह का योग बनता है।

2. शुक्र और मंगल परस्पर भाव परिवर्तन का योग निर्मित करते हैं तथा इनका संबंध बृहस्पति से होता है तो जातक पहले शारीरिक संबंध कायम करता है तथा उसके बाद विवाह करता है।

3. शुक्र एवं मंगल का संयोग लग्न या सप्तम भाव से हो तथा चंद्रमा का इस पर प्रभाव पड़ता है तो ऐसा जातक प्रेम-विवाह करता है। इसके कारण शारीरिक संयोग भी विवाह का कारण बन सकता है।

4. कुंडली में बृहस्पति और सप्तम भाव के स्वामी के सबल होने से प्रेम विवाह सफल होते है। बृहस्पति की कृपा से वैवाहिक जीवन समृद्ध और स्थिर होता है। सप्तम भाव का सबल स्वामी वैवाहिक जीवन को सफलता प्रदान करता है।

5. शनि और बृहस्पति के गोचर भाव से प्रेम-विवाह की अवधि का पता चलता है। गोचर में जब शनि और बृहस्पति का संबंध सप्तम भाव के स्वामी से होता है तो विवाह अवश्यंभावी हो जाता हैं !!!

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लव-मैरिज का मतलब होता है अपनी पसंद से विवाह करना, अब चाहे लाइफ पार्टनर हमारी जाति के हों या नहीं।

* किसी भी व्यक्ति की कुंडली में पांचवें भाव से प्रणय संबंधों का पता चलता है जबकि सातवां भाव विवाह से संबंधित है। शुक्र सातवें भाव का कारक ग्रह है अतः जब पंचमेश-सप्तमेश एवं शुक्र का शुभ संयोग होता है तो पति-पत्नी दोनों में गहरा स्नेह संबंध होता है। ऐसी ग्रह स्थिति में प्रेम विवाह संभव है।

* शुक्र सप्तमेश (सेवंथ हाउस में मौजूद राशि का स्वामी) से संबंधित होकर पांचवें भाव में बैठा हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है।

* पंचमेश व सप्तमेश का राशि परिवर्तन हो तो भी प्रेम विवाह संभव होता है। यानी पांचवी राशि सातवें घर में बैठी हो और सातवीं राशि पांचवें घर में।

* मंगल, शुक्र का परस्पर दृष्टि प्रेम विवाह का परिचायक है।

* पंचम या सप्तम भाव में सूर्य एवं हर्षल की युति होने पर भी प्रेम विवाह हो सकता है।

इस प्रकार के योग यदि जन्म कुंडली में होते हैं, तब प्रेम विवाह के योग बनते हैं। यह जरूरी नहीं है कि प्रेम विवाह मतलब जाति से बाहर विवाह होना।

पति-पत्नी के बीच अनबन को दूर करने के 3 मंत्र…..

पति-पत्नी का रिश्ता बहुत ही पवित्र और अटूट होता है, लेकिन यह एक ऐसा रिश्ता भी है जहां कलह-क्लेश की सबसे ज्यादा गुंजाइश होती है। कभी-कभी यह क्लेश काफी बढ़ जाता है, जो जिंदगी को तबाह करने पर भी तुल जाता है। इस आपसी सामंजस्य को बेहतर बनाने के लिए कुछ ऐसे मंत्र भी हैं, जिनका जाप आपके इस कलह-क्लेश को आपसे दूर कर सकता है। आइए, जानें वैवाहिक जीवन को बेहतर बनाने और आपसी अनबन को दूर भगाने के लिए किन मंत्रों का जाप करना उचित है।

कुछ जोड़े कुत्ते-बिल्लियों की तरह लड़ते-झगड़ते रहते हैं, जिनके कारण उनका वैवाहिक जीवन एकदम खराब हो जाता है।
इसे दूर करने के लिए आप सूर्योदय से पहले स्नान आदि के बाद किसी मंदिर में जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और इस मंत्र का जाप करें।

ओम् नम: संभवाय च मयो भवाय च नम:
शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च।।

पति-पत्नी के मतभेद को दूर करने के लिए कुछ लोग मंत्र जाप का भी सहारा लेते हैं। कहते हैं यदि यह जप विधि-विधान से किया जाए तो पति-पत्नी के बीच कभी अनबन नहीं होती साथ ही प्रेम भी बढ़ता है।

अक्ष्यौ नौ मधुसंकाशे अनीकं नौ समंजनम्।
अंत: कृणुष्व मां ह्रदि मन इन्नौ सहासति।।

कब करें जप:
सुबह उठकर स्नान के बाद किसी एकांत जगह आसन बिछा लें और पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें। सामने मां पार्वती की प्रतिमा या चित्र रखें और श्रद्धापूर्वक उनकी स्तुति करते हुए 21 बार ऊपर लिखे मंत्र का जाप करें।

वैवाहिक सुख की प्राप्ति और अनबन के निवारण के लिए सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर भगवती दुर्गा की प्रतिमा के सामने दीया और अगरबत्ती जलाकर पुष्प अर्पित करें। अब नीचे लिखे मंत्र का 108 बार जाप करें। ज्योतिषी औऱ पंडितों का मानना है कि ऐसा करने से कुल 21 दिनों में ही सुख-शांति का वातारण व्याप्त हो जाएगा-

मंत्र

धां धीं धूं धूर्जटे! पत्नी वां वीं वूं वाग्धीश्वरि।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि! शांत शीं शूं शुभं कुरू।।

ससुराल में सुखी रहने के लिए :

1- कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।

2- सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।